रायपुर शहर के कुछ पुरानी जगहों के इतिहास | 0ld places of Raipur City.

History of some old places of Raipur city.

रायपुर शहर के कुछ पुरानी जगहों के इतिहास : रायपुर में स्थित पुरानी बस्ती की पहचान छत्तीसगढ़ की सबसे पुरानी बसाहटों के तौर पर है। दरअसल रायपुर की बसाहट ही पुरानी बस्ती से शुरू हुई थी। सबसे पुराने मठ मंदिर इसी इलाके में हैं। समय के साथ इसमें कई परिवर्तन हुए लेकिन धरोहरों के रूप में आज भी कई स्थल सुरक्षित है। इसकी तंग गलियों में रायपुर के इतिहास का विस्तारित स्वरूप देखा जा सकता है ।

रायपुर शहर के कुछ पुरानी जगहों | 0ld places of Raipur City

  1. आनंद समाज पुस्तकालय भवन | Anand Samaj Pustakalay Bhavan
  2. कंकाली तालाब मंदिर | Kankalee Talab Mandir
  3. नागरीदास मंदिर एवं बावली | Nageedas Mandir or Bavalee
  4. जगन्नाथ मंदिर, टुरी हटरी | Jagannath Mandir, Tooree Hatree
  5. टुरी हटरी बाज़ार | Tooree Hatree Bazar
  6. शीतला मंदिर | Sheetala Mandir
  7. महामाया मंदिर | Mahamaya Mandir
  8. दूधाधारी मठ | Doodhadharee Math
  9. महाराजबंध तालाब | Maharajabandh Talab

1. आनंद समाज पुस्तकालय भवन | Anand Samaj Pustakalay Bhavan

ब्राह्मणपारा में कंकाली तालाब के समीप स्थित यह पुस्तकालय स्वतंत्रता आंदोलन के समय बहुआयामी गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध रहीं। इस पुस्तकालय की स्थापना स्व. जी. आर देशपाण्डे तथा स्व. भाईराम पेस्टन जी द्वारा सन् 1908 में की गई थी।

कंकाली तालाब यह रायपुर जिले का सबसे पुराना पुस्तकालय है। सन् 1920 में महात्मा गाँधी ने इस भवन के सामने खुले स्थान पर महिलाओं के विशाल समुदाय को सम्बोधित किया था तथा स्वराज कोष के लिए महिलाओं द्वारा प्रदत्त जेवरों से दो हजार रूपये एकत्र किए थे।

यह भवन अंग्रेजी के 'सी' अक्षर जैसा है, इसमें दो कमरों के साथ एक हॉल है। मुख्य भवन इस स्थल के पश्चिम दिशा में है, जिसके चारों ओर खुला मैदान है। प्रवेशद्वार पश्चिम दिशा में है। स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत रायपुर नगर निगम द्वारा इस भवन के जीर्णोद्धार की योजना बनायी जा रही है

2. कंकाली तालाब मंदिर | Kankalee Talab Mandir

नगर में पुरानी बस्ती और ब्राह्मणपारा से लगा हुआ कंकालीपारा है। कंकाली देवी का मंदिर विशाल वट वृक्ष की छाया में स्थित है। लगभग 4 सौ साल पहले गोस्वामी पंथ के एक साधु द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी।

मंदिर के आसपास गोस्वामियों की समाधियाँ भी बनी हुई है। परिसर में एक जलकुण्ड है, जिसके मध्य में शिवजी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के तल में कुछ शस्त्र रखे गए हैं, जिनका दर्शन व पूजन दशहरा पर्व के समय किया जाता है। मंदिर के पीछे स्थित स्थान को कंकाली देवी का मायका माना जाता है।

यहाँ स्थित तालाब में तीन ओर से पत्थर के सुंदर घाट बने हुए हैं। कहा जाता है, कि इसे नागा साधुओं ने बनाया था। इस तालाब के निर्माण के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन मंदिर के पास पहले महंत कृपालगिरी की समाधि है, जिन्होंने इस तालाब को बनवाया था।

3. नागरीदास मंदिर एवं बावली | Nageedas Mandir or Bavalee

यह मंदिर पुरानी बस्ती में लिली चौक से कुछ दूरी पर दायीं तरफ स्थापित है। इस मंदिर का निर्माण सन् 1830 में मधुकर साव ने कराया था। यह नागरी शैली में निर्मित है। परन्तु, इसे देखकर लगता है कि इसका निर्माण राजिम मंदिर की तर्ज पर करने का प्रयास किया गया है।

प्रारंभ में इसके गर्भगृह में मात्र भगवान राम की प्रतिमा स्थापित थी। सन् 1863 में सीता और लक्ष्मण की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई। संगमरमर से बनी इन प्रतिमाओं को राजस्थान से मंगवाया गया था। परिसर के भीतर मधुकर साव उनकी पत्नी कृष्णा देव और मधुकर साव के भाई गजराज साव की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।

कहीं कहीं निर्माणकर्ताओं में बोधन साव और कोदन साव के नाम का उल्लेख भी मिलता है। संभवत: यह मधुकर साव और गजराज साव के ही बुलाने के नाम रहे होंगे। इसके अलावा यहाँ महंतों की चरणपादुकाएं भी रखी हैं। इस मंदिर के पहले महंत आरती दास थे। इसके बाद सन् 1870 से लेकर 1910 तक नागरी दास यहाँ के महंत रहे।

इनके काल में बड़ी संख्या में साधू संतों की टोली यहाँ आती थीं। पर्व-उत्सव आदि खूब धूमधाम से मनाए जाते थे। इन्हीं के नाम पर यह नागरीदास मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सन् 1910 में यहाँ राधिका दास महंत के पद पर आसीन हुए। तब भी यह मंदिर नागरीदास के नाम से ही जाना जाता था।

सन् 1933 में उनके गुरुभाई महंत पुरुषोत्तम दास ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। मंदिर परिसर में एक पुरानी बावली भी है, जो 4 सौ वर्ष से भी अधिक पुराना बताया जाता है। इसका पानी कभी नहीं सूखता। इस बावली से तीन हनुमानजी की मूर्तियाँ बाहर निकली थीं, जिनमें से एक दूधाधारी मठ, दूसरी गुड़ियारी मंदिर एवं तीसरी मूर्ति बावली के निकट ही स्थापित है।

इसलिए इसे संकटमोचन बावली के नाम से भी जाना जाता है। इस आयताकार बावली में नीचे उतरने के लिए सात सीढ़ियां बनी हैं। इसके चारों ओर लगभग 1 मीटर लम्बी दीवार है।

4. जगन्नाथ मंदिर, टुरी हटरी | Jagannath Mandir, Tooree Hatree

पुरानी बस्ती, टूरी हटरी में स्थित इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया यह अज्ञात है। इसका निर्माण काल 1609- 1615 ई. के मध्य माना जाता है। इसी मंदिर के निकट सन् 1932 में नये राम-जानकी मंदिर का निर्माण दानी परिवार के वंशज दाऊ कल्याण सिंह ने करवाया था।

मंदिर परिसर का प्रवेशद्वार उत्तर दिशा में है। दक्षिण में प्रस्तर निर्मित जगन्नाथ मंदिर स्थापित है, जिसके बरामदे के सम्मुख हनुमान मंदिर है। परिसर के मध्य में पूर्वाभिमुखी राम-जानकी मंदिर है। दक्षिण- पश्चिम कोने पर एक समाधि स्थल है।

इस मंदिर के उत्तर में एक कुआं तथा कुएं के दाहिनी तरफ एक शिव मंदिर है। जगन्नाथ मंदिर का शिखर तथा बरामदे में लगे काष्ठ स्तम्भ अलंकृत है, जबकि राम-जानकी मंदिर का शिखर गोलाकार है। अन्य मंदिरों के शिखर छोटे तथा सामान्य हैं। यहाँ पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर रथयात्रा आयोजित होती है।

5. टुरी हटरी बाज़ार | Tooree Hatree Bazar

जगन्नाथ मंदिर के अलावा टूरी हटरी अपने इतिहास के लिए भी प्रसिद्ध था। छत्तीसगढ़ में टूरी का अर्थ लड़की व हटरी का अर्थ बाज़ार होता है। जगन्नाथ मंदिर के सामने आज से 150 साल पूर्व तीन घने पेड़ के नीचे एक ऐसा बाज़ार लगता था जिसमें क्रेता और विक्रेता दोनों महिलाएं हुआ करती थीं।

वर्तमान में यहाँ स्थित दुकानों पर बैठने वाले पुरुष व्यापारी अपनी दादी-नानी की दुकान ही संभाल रहे हैं। तीनों पेड़ आज भी मौजूद हैं, जो बाज़ार को छाँव देते हैं। एक तरफ सैकड़ों वर्ष पुरानी किराने की दुकानें हैं और दूसरी तरफ उतनी ही पुरानी हलवाई की दुकान जो अब खंडहर हो चुकी है।

इसके अलावा सन् 1933 में महात्मा गांधी ने टूरी हटरी में सभा आयोजित कर छूआछूत के खिलाफ सन्देश दिया था एवं यहीं स्थित हनुमान मंदिर, जिस पर ऊंची जाति वालों का कब्जा था में वंचित समाज के लोगों को पहली बार प्रवेश दिलवाया था।

6. शीतला मंदिर | Sheetala Mandir

जगन्नाथ मंदिर के अलावा टूरी हटरी अपने इतिहास के लिए भी प्रसिद्ध था। छत्तीसगढ़ में टूरी का अर्थ लड़की व हटरी का अर्थ बाज़ार होता है। जगन्नाथ मंदिर के सामने आज से 150 साल पूर्व तीन घने पेड़ के नीचे एक ऐसा बाज़ार लगता था जिसमें क्रेता और विक्रेता दोनों महिलाएं हुआ करती थीं।

वर्तमान में यहाँ स्थित दुकानों पर बैठने वाले पुरुष व्यापारी अपनी दादी-नानी की दुकान ही संभाल रहे हैं। तीनों पेड़ आज भी मौजूद हैं, जो बाज़ार को छाँव देते हैं। एक तरफ सैकड़ों वर्ष पुरानी किराने की दुकानें हैं और दूसरी तरफ उतनी ही पुरानी हलवाई की दुकान जो अब खंडहर हो चुकी है।
 
इसके अलावा सन् 1933 में महात्मा गांधी ने टूरी हटरी में सभा आयोजित कर छूआछूत के खिलाफ सन्देश दिया था एवं यहीं स्थित हनुमान मंदिर, जिस पर ऊंची जाति वालों का कब्जा था में वंचित समाज के लोगों को पहली बार प्रवेश दिलवाया था।

7. महामाया मंदिर | Mahamaya Mandir

पुरानी बस्ती में स्थित महामाया मंदिर प्रमुख शक्तिपीठों में एक है। इस मंदिर का निर्माण कलचुरी शासकों ने कराया से था। देवी महामाया कलचुरी शासकों की कुलदेवी मानी जाती हैं। मान्यता है, कि रतनपर के कलचुरियों की एक शाखा जब रायपुर में बस गई तो उन्होंने अपनी कुलदेवी महामाया का भव्य मंदिर यहाँ बनवाया था।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में राजा मोरध्वज द्वारा देवी की अष्टभुजी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई, जो उन्हें खारून नदी में मिली थी। कालांतर में मराठा शासकों ने मंदिर परिसर का विस्तार करवाया।

यहाँ स्थापित महामाया की प्राचीन मूल प्रतिमा अत्यंत रौद्र स्वरूप में है, जिसे देख लोग भयभीत हो उठते थे। इसलिए मूल प्रतिमा के सामने अन्य प्रतिमा प्रतिष्ठित कर दी गई। इस मंदिर में देवी महामाया के अलावा समलेश्वरी देवी, काल भैरव, बटुक भैरव और हनुमान मंदिर भी है।

8. दूधाधारी मठ | Doodhadharee Math

यह प्राचीन मठ पुरानी बस्ती के मठपारा में स्थित है। मठ की सीढ़िया चढ़ते ही सामने मोटी लोहे की सलाखों से बने मंदिर का मुख्य द्वार है, जिसके ऊपर लगे हुए सफ़ेद संगमरमर में मठ का निर्माण काल संवत 1610 दर्ज है यानि सन 15541 मठ भले ही अंग्रेजों के शासनकाल से पहले स्थापित हुआ हो, लेकिन वर्तमान संरचना का निर्माण अंग्रेजों के शासनकाल में ही हुआ ।

किंवदंती है, कि हरे-भरे पेड़ो के बीच बलभद्र दास अपनी कुटिया में रहते थे। उनका अधिकतर समय उनके इष्ट हनुमान की भक्ति में निकलता था। वे गाय के दूध से हनुमान का अभिषेक करते और उसी दूध का सेवन, अन्य कोई आहार नहीं।

आसपास के लोग उन्हें आहार के रूप में सिर्फ दूध का सेवन करते देख उन्हें दूधाधारी के नाम से पुकारने लगे। यहीं से मठ का नामकरण हो गया 'दूधाधारी मठ'। मुख्य द्वार पार करने पर ऊपर छत को संभाले लकड़ी की बीम नज़र आती है।

इसके बाद लकड़ी से बना विशाल दरवाजा है। उसे छूने मात्र से उसके भार का अंदाज़ा हो जाता है । लकड़ी का यह दरवाजा पार करते ही एक सीध में छोटे-छोटे मंदिर है, जो वहां के पूर्व महंतों के प्रतीक चिन्ह है, जिन्होंने मठ में अपनी सेवा दी है। इन छोटे मंदिरों से मुख्य मंदिर का मुख छुप जाता है।

मंदिर प्रांगण में मुख्य तीन मंदिर है। सबसे बड़ा राम-जानकी मंदिर, उसके बाद श्री बालाजी मंदिर और अंत में सबसे छोटा पर सबसे मुख्य हनुमान मंदिर है, जो सबसे पहले बना था। यही हनुमान दूधाधारी मठ के इष्टदेव माने जाते हैं। राम-जानकी मन्दिर का निर्माण पुरानी बस्ती के दाऊ परिवार द्वारा किया गया था, जिसकी मूर्ति निर्माण हेतु पत्थर राजस्थान से मंगवाए गए थे।

वहीं श्री बालाजी मंदिर का निर्माण नागपुर के भोंसले वंश द्वारा बताया जाता है। चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा हुआ मठ एक किले की तरह है। उन दीवारों के ऊपर जाने के लिए सीढ़िया बनी हैं, जिसे देख कर ऐसा लगता है मानो पुराने समय मे दीवारों के ऊपर से निगरानी की जाती हो।

यहाँ एक पुराना कुआं भी मौजूद है, जिसका उपयोग आज भी किया जाता है। इन सब के अलावा मठ में एक छात्रावास भी है, जहां विद्यार्थियों को रहने और खाने की सुविधा निःशुल्क दी जाती है। मठ में सभी को मिला कर लगभग सौ लोग रहते है।

मठ की एक और खासियत यह है, कि यहां दो रसोईघर है, एक रसोई का नाम सीता है एवं दूसरे का अनसुइया। सीता रसोई में सुबह का भोजन पकता है एवं अनसुइया रसोई में शाम का। यहां आज भी पुराने बड़े-बड़े चूल्हों में खाना पकाया जाता है। मठ में अनाज भंडारण के लिये बहुत बड़ी जगह है, जहां आज भी अनाज कूटने से लेकर पीसने तक के लिए पुराने तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं।

मठ में बलभद्रदास के बाद कई महंत हुए, जिन्होंने मठाधीश का पद संभाला। उन्ही में से एक थे महंत वैष्णवदास ।। वह स्वतंत्रता की लड़ाई में जेल भी गए। उन्होंने महिला उच्च शिक्षा के लिये रायपुर में डीबी महिला महाविद्यालय और संस्कृत महाविद्यालय की शुरुआत की।

9. महाराजबंध तालाब | Maharajabandh Talab

मठपारा में दूधाधारी मठ के निकट स्थित यह प्राचीन तालाब मूल रूप से एक दलदली क्षेत्र था, जिसमें महाराज दानी द्वारा सन् 1775 में किले से एक कि.मी. दूर एक तटबंध का निर्माण करवाया गया था। महाराज दानी मराठों के शासन काल में एक किसान थे। उन्होंने एक दलदली क्षेत्र को खूबसूरत जलाशय में बदल दिया। उनके नाम पर ही यह तालाब महाराजबंध के नाम से जाना जाता है।

सन् 1775 में ही बिम्बाजी भोंसले ने तालाब के दक्षिणी तट पर एक रामचंद्र मंदिर का निर्माण करवाया। इस तालाब की भू-योजना आयताकार है, उत्तर दिशा को छोड़कर सभी दिशाओं में सड़क बनी है। पश्चिमी तथा दक्षिण दिशा में मंदिर निर्मित है। यहाँ एक पुराना बरगद का पेड़ भी है। दक्षिण तथा पश्चिम दिशा में मंदिर तथा बरगद के पेड़ के निकट पत्थर से घाट बना है।