राजनांदगांव जिले का प्राचीन इतिहास | नांदगांव रियासत की सम्पूर्ण जानकारी

राजनांदगांव जिले का प्राचीन इतिहास | नांदगांव रियासत की सम्पूर्ण जानकारी

राजनांदगांव जिले का प्राचीन इतिहास: राजनांदगांव जिला छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से दक्षिण-पश्चिम दिशा में 80 किलोमीटर दूर है।

राजनांदगांव जिले का मूल नाम नंदग्राम है, जो अपभ्रंश होकर नंदगांव हो गया है।

पहले यह एक रियासत था, जिसके बैरागी महंत शासक कृष्ण थे। इसलिए, भगवान कृष्ण के आध्यात्मिक पिता नंद के नाम पर इसका नाम नंदग्राम रखना प्रासंगिक लगता है।

इसके अलावा कुछ विद्वान छत्तीसगढ़ी बोली में बमीठा यानी 'चींटियों का घर' के आधार पर नंदगांव का नाम नांदगांव स्वीकार करते हैं।

शिवनाथ और बाघ नदियों से समशीतोष्ण जलवायु वाला यह जिला अपने प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन स्थल बम्लेश्वरी देवी के मंदिर के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है, जो कि 40 किमी उत्तर-पश्चिम से प्रारम्भ होने वाली पर्वत शृंखलाओं के ऊँचे शिखर पर स्थित है।


    01. बंगाल-नागपुर कॉटन मिल

    यह सूती वस्त्र उद्योग वर्ष 1892 में तत्कालीन राजा के प्रयासों से सेंट्रल प्रोविंसेस कॉटन मिल के नाम से स्थापित किया गया था।

    इस मिल के निर्माता हैं मुंबई के जे. वी मैकबेथ. यहां सूती कपड़े का उत्पादन 1894 में शुरू हुआ।

    1897 में इस मिल को मेसर्स शॉ वालेस कंपनी, कोलकाता को बेच दिया गया। बाद में इसका नाम बदलकर बंगाल-नागपुर कॉटन मिल कर दिया गया। बाद में यह मिल जिले की आर्थिक रीढ़ बन गई। लेकिन वर्ष 1998-99 में ये बंद हो गया।



    02. राजमहल (दिग्विजय महाविद्यालय)

    आजादी के बाद महंत राजा दिग्विजय दास ने अपना महल शिक्षण संस्थान को दान कर दिया। यह किलेनुमा महल वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है।

    1957 में नंदगांव शिक्षा मंडल द्वारा प्राचीन महल में दिग्विजय महाविद्यालय की स्थापना की गई थी।

    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के अलावा भी यह इमारत कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इसके किनारे पर त्रिवेणी संग्रहालय स्थित है और यह महल एक झील से घिरा हुआ है।

    कॉलेज के पास बूढ़ा तालाब और रानी सागर तालाब बने हैं। रानी सागर तालाब 200 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।

    कहा जाता है कि रियासत काल में राजपरिवार की रानियां रानी सागर में जलक्रीड़ा किया करती थीं। इसलिए तालाब के पानी को साफ़ रखने पर बहुत ध्यान दिया जाता था।

    पहले रानी सागर का तट हरे-भरे बगीचे से आच्छादित था। एक छोर पर भूलन बाग बना हुआ था, जिसमें विभिन्न प्रकार के पेड़ लगे हुए थे। इन तालाबों के किनारे पुराने मंदिर बने हुए हैं।

    जिला प्रशासन द्वारा रानी सागर एवं बूढ़ा सागर के तट पर एक सुंदर उद्यान विकसित किया गया है।

    कॉलेज परिसर में ही बूढ़ा सागर के तट पर बना शीतला मंदिर स्थानीय निवासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।



    03. त्रिवेणी परिसर

    प्रसिद्ध साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध दिग्विजय कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर थे। उनका आवास कॉलेज परिसर में ही था. यहीं रहकर उन्होंने अनेक कालजयी रचनाएँ कीं। महाविद्यालय परिसर स्थित भूलन बाग को त्रिवेणी परिसर के रूप में विकसित किया गया है।

    त्रिवेणी परिसर में मुक्तिबोध के आवास को मुक्तिबोध स्मारक के रूप में विकसित किया गया है।

    उनकी रचनाएँ यहाँ संरक्षित हैं। वहां उनकी पोशाक, चश्मा, कलम आदि देखकर साहित्य प्रेमी आज भी रोमांचित हो जाते हैं।

    मुक्तिबोध स्मारक परिसर के परिसर में राजनांदगांव के तीन प्रमुख साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, गजानन माधव मुक्तिबोध और डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र की प्रतिमाएं स्थापित हैं।



    04. पातालभैरवी मन्दिर (बर्फानी बाबा मन्दिर)

    यह मंदिर दुर्ग-नागपुर मार्ग पर राजनांदगांव में स्थित है।

    मंदिर के शीर्ष पर बना विशाल शिवलिंग और उसके सामने स्थापित नंदी दूर से ही दिखाई देते हैं।

    यह मंदिर प्राचीन पातालभैरवी मंदिर के खंडहरों पर बनाया गया है। आधुनिक इमारत तीन मंजिला है। प्रथम तल में पातालभैरवी मंदिर है, इसके अंदर जमीन से 16 फीट नीचे बने गोलाकार गर्भगृह में पातालभैरवी की 15 फीट ऊंची विकराल मुद्रा वाली प्रतिमा स्थापित है। इस मूर्ति का वजन 11 टन है।

    दूसरी मंजिल पर नवदुर्गा और तीसरी मंजिल पर शिव स्थापित हैं। यह मंदिर पातालभैरवी मंदिर और बर्फानी बाबा मंदिर दोनों नाम से प्रसिद्ध है।

    यह स्थानीय नागरिकों के लिए आस्था का केंद्र है, यही कारण है कि शिवरात्रि और नवरात्रि के अवसर पर हजारों भक्त यहां पहुंचते हैं।



    05. जिला पुरातत्व संग्रहालय

    जिला पुरातत्व संग्रहालय राजनांदगांव छत्तीसगढ़ के प्रमुख संग्रहालयों में से एक है। इस संग्रहालय की शुरूआत वर्ष 1987-88 में कलेक्टर कार्यालय परिसर के एक कमरे से की गई थी।

    हालाँकि, आज इस परिसर में नवनिर्मित भवन कई वीथिकाओं से सुसज्जित है, जिसमें प्रागैतिहासिक काल से लेकर राजनांदगांव जिले की रियासतों तक का इतिहास पुरावशेषों और तस्वीरों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है।

    यह संग्रहालय पाँच वीथिकाओं में विभाजित है:

    1. प्रवेश वीथिका 
    2.  प्रतिमा वीथिका 
    3.  पुरातत्व वीथिका 
    4.  अस्त्र-शस्त्र वीथिका 
    5.  आदिवासी/लोककला वीथिका


    01. प्रवेश वीथिका

    प्रथम प्रवेश वीथिका के नीचे बरामदे के मुख्य भाग में राजनांदगांव जिले के प्रमुख पुरातात्विक स्थल (प्राचीन शिव मंदिर, गंडई) की वास्तुकला की प्रतिकृतियां प्रदर्शित की गई हैं।

    दीवार के किनारे पर छत्तीसगढ़ राज्य और राजनांदगांव जिले की पुरातात्विक विरासत, पर्यटन स्थल और विभिन्न रियासतों के राजाओं के चित्र और मानचित्र प्रदर्शित हैं।



    02. प्रतिमा वीथिका

    दूसरी प्रतिमा वीथिका में राजनांदगांव जिले से संग्रहित 45 प्राचीन प्रतिमाएं, 5 धातु प्रतिमाएं एवं अन्य प्रतिमाओं की प्रतिकृतियां प्रदर्शित हैं।



    03. पुरातत्व वीथिका

    तीसरी पुरातत्व गैलरी में जिले के प्राचीन सिक्के, मुद्रा, पत्थर के औजार, जीवाश्म और खनिज संसाधनों के मॉडल प्रदर्शित किए गए हैं।



    04. अस्त्र-शस्त्र वीथिका

    चौथी शस्त्र वीथिका में राजनांदगांव रियासत के अस्त्र-शस्त्र प्रदर्शित हैं।



    05. आदिवासी/लोककला वीथिका

    पांचवी आदिवासी/लोक कला वीथिका में राजनांदगांव जिले की आदिवासी/लोक कला से संबंधित आभूषण, वेशभूषा, शिकार उपकरण, देवी-देवता और संगीत वाद्य प्रदर्शित किये गये हैं।



    06. शैलचित्र, चितवा डोंगरी

    जिला मुख्यालय से लगभग 51 किलोमीटर दूर अंबागढ़ चौकी तहसील के पास 150 फीट ऊंची चितवा डोंगरी पहाड़ी स्थित है, जहां प्रागैतिहासिक शैलचित्र मिले हैं।

    यहां स्थित तीन गुफाओं में नव पाषाण युग के 27 शैल चित्र मिले हैं। अधिकांश चित्रों में नाविकों, स्त्री-पुरुषों को कृषि कार्य करते हुए दर्शाया गया है और सभी चित्रों का रंग गेरुआ है।

    यहां पाए जाने वाले चित्रों की खासियत यह है कि इन सभी में प्रदर्शित मनुष्यों की शारीरिक संरचना, वेशभूषा और भाव-भंगिमाएं चीनी व्यापारियों के चित्रों के समान हैं।

    इन चित्रों के पास एक कलात्मक ड्रैगन की आकृति भी है, जो 90 डिग्री के कोण पर खड़ी है।

    तस्वीरों को देखकर ऐसा लगता है जैसे इन्हें बनाने वाले कहीं न कहीं चीनी जीवन से प्रभावित रहे होंगे. यह भी ज्ञात है कि उस काल में परिवहन के लिए नावों का उपयोग किया जाता था।



    07. अंबागढ़

    यह धार्मिक स्थल अंबागढ़ चौकी में स्थित है।

    यहां अम्बादेवी का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है। गर्भगृह में देवी दुर्गा प्रतिष्ठित हैं, जो अम्बादेवी के नाम से प्रसिद्ध हैं।

    यह जिला ही नहीं प्रदेश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है।



    08. डोंगेश्वर महादेव

    यह मंदिर जिला मुख्यालय से लगभग 65 किमी दूर है। यह जंगलपुर नामक स्थान पर एक पहाड़ी के नीचे स्थित है।

    इस पहाड़ी के अंदर सतह से करीब 100 फीट नीचे एक गुफा है। इस गुफा में साल भर पानी बहता रहता है।

    पहुंच मार्ग अत्यंत दुर्गम होने के बावजूद सुरम्य प्राकृतिक स्थल होने के कारण यहां पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है।



    09. भाँड देउर, टिकरीपारा (गंडई)

    राजनांदगांव से लगभग 72 किमी दूर स्थित गंडई राजनांदगांव जिले का सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है।

    गंडई के टिकरीपारा गांव में स्थित शिव मंदिर इस क्षेत्र में भाँड देउर के नाम से प्रसिद्ध है।

    छत्तीसगढ़ी में भाँड का मतलब टूटा हुआ या गिरा हुआ और देउर का मतलब मंदिर होता है। अत: यहां भाँड देउर का अर्थ टूटा हुआ मंदिर है।

    पहले यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण था, जिसका संरक्षण एवं जीर्णोद्धार केन्द्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा कराया गया है। यह मंदिर वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

    पुरातत्वविदों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 11वीं और 12वीं शताब्दी में कल्चुरी काल में हुआ था। यह न केवल भोरमदेव मंदिर का समकालीन है, बल्कि उतना ही भव्य और उन्नत भी है।

    नागर शैली में निर्मित यह पंचरथ प्रकार का मंदिर पूर्वाभिमुख है। इस मंदिर में गर्भगृह और अंतराल का कुछ भाग सुरक्षित है। इससे यह सिद्ध होता है कि महामण्डप और अन्तराल का शेष भाग भी भव्य एवं अप्रतिम रहा होगा।

    मंदिर के सामने नंदी की पश्चिमाभिमुख अलंकृत प्रतिमा स्थापित है। अंतराल के ऊपर एक अलग शिखर स्थापित किया गया है।

    इस शिखर पर ज्यामितीय आकृतियों और फूलों की झालरों के साथ महिला आकृतियाँ मौजूद हैं। सबसे ऊपर शेर की मूर्ति मंत्रमुग्ध कर देने वाली दहाड़ मुद्रा में विराजमान है, जिसकी भव्यता देखने लायक है।



    10. नर्मदा कुंड

    जिला मुख्यालय से करीब 72 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत चकनार स्थित ग्राम नर्मदा में नर्मदा कुंड है, जहां हर साल नर्मदा महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

    जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। पवित्र तालाब के अलावा यहां मराठाकालीन पंचायतन शैली में बना एक मंदिर भी है।



    11. शिव मन्दिर, घटियारी

    यह प्राचीन शिव मंदिर गंडई नगर से 4 किमी दूर है। यह कुछ दूरी पर बिरखा गांव में पहाड़ी की तलहटी में टूटी हुई हालत में मौजूद है। यह मंदिर वर्ष 1980 में उत्खनन के बाद प्रकाश में आया था।

    कवर्धा के फणीनागवंशी शासकों के काल में निर्मित यह शिव मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण संरचना है।

    लगभग 11वीं शताब्दी ई. में बना यह मंदिर अपनी कलात्मक वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है और पुरातत्व अनुसंधान की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

    इस पूर्वाभिमुख मंदिर के फर्श विन्यास में गर्भगृह, अंतराल और मंडप तीन भाग थे, जिनमें से वर्तमान में मंडप का भाग नष्ट हो गया है और केवल गर्भगृह और अंतराल की दीवारें ही बची हैं।

    राज्य संरक्षित इस शिव मंदिर को सुरक्षित एवं सुदृढ़ बनाकर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।



    12. प्राकृतिक स्थल, मनगटा

    मुंबई-हावड़ा रेलवे लाइन पर स्थित मुढ़ीपार-मनगटा वन क्षेत्र प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान है।

    यह वन क्षेत्र चीतल का प्राकृतिक आवास है। यहां जंगली सूअर, लकड़बग्घा, अजगर और मोर भी पाए जाते हैं।

    वन विभाग द्वारा इसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया गया है। लोग इस खूबसूरत जंगल में घूमकर वन्य जीवन और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेते हैं।

    पहाड़ियों के बीच बने प्राकृतिक जलाशय और बच्चों के लिए बगीचे तथा अन्य आकर्षणों के कारण यह एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल बनता जा रहा है।



    13. राजमहल, छुईखदान

    जिला मुख्यालय से लगभग 76 कि.मी. छुईखदान ब्लॉक राजनांदगांव-कवर्धा मार्ग पर स्थित है।

    यहां छुई मिट्टी (एक प्रकार की सफेद मिट्टी) की खदानें होने के कारण इसका नाम छुईखदान पड़ा। यहां स्थित राजमहल (केसर महल) आज भी अपनी भव्यता के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है।

    यह शहर के केंद्र में स्थित है। इसका निर्माण 1918 में राजा बहादुर किशोर दास ने करवाया था।

    इस महल की दीवारों पर बेहद आकर्षक पेंटिंग्स हैं, जो इसे खास बनाती हैं। वर्तमान में यहां हेरिटेज होटल संचालित होता है।



    14. कोपरो जलप्रपात, छुईखदान

    यह खूबसूरत झरना छुईखदान के कुआँधांस नाले पर बना है। इसलिए इसे कुआदाह के नाम से भी जाना जाता है।

    यह झरना पूरे साल यूं ही बना रहता है, लेकिन सितंबर-अक्टूबर में यह अपने पूरे यौवन पर होता है।

    छुईखदान से साल्हेवारा होते हुए राजपुर कोपरो पहुंचा जा सकता है। यह स्थान पहाड़ियों और हरे-भरे जंगल से घिरा हुआ है।

    पर्वत श्रृंखलाओं और प्राकृतिक मनोरम दृश्यों के कारण यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।

    वन विभाग की सहमति एवं सहभागिता से निकट भविष्य में इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है।



    15. चतुर्भुज मन्दिर, छुईखदान

    ग्राम पंचायत कटंगी में स्थापित चतुर्भुज मंदिर धार्मिक पुरातात्विक दृष्टि से दर्शनीय है।

    इस मंदिर में 11वीं, 12वीं और 13वीं शताब्दी की प्राचीन मूर्तियां बिखरी हुई हैं। इसकी मूल संरचना लगभग ध्वस्त हो चुकी है।

    स्थानीय निवासियों की मदद से यहां एक नए मंदिर का निर्माण किया गया है, जिसमें प्राचीन मूर्तियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

    यहां चतुर्भुज लक्ष्मी, शिवलिंग, गणेश, इच्छाधारी नाग, कंकाली देवी, नंदी समेत कई खूबसूरत प्राचीन मूर्तियां हैं।



    16. मंदीपखोल

    जिला मुख्यालय से लगभग 85 कि.मी. मंदीपखोल छुईखदान ब्लॉक के अंतर्गत स्थित एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल है।

    यहां एक प्राकृतिक गुफा और जलस्रोत है। इस गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से बना हुआ एक शिवलिंग है।

    यह साल में केवल एक बार अक्षय तृतीया के बाद वाले सोमवार को खुलता है।

    गुफा तक पहुंचने का रास्ता ठाकुरटोला चौक से शुरू होता है। इसके बाद जंगल और पहाड़ों को पार करते हुए एक ही नदी को अलग-अलग जगहों से 16 बार पार करना पड़ता है।

    गुफा में प्रवेश करने से पहले स्थानीय जमींदार के वंशज कुंड में स्नान और पूजा करते हैं। यह गुफा पांच मंजिला बताई जाती है।

    यहां पहुंचने से पहले भक्त महागौरी और हनुमान के दर्शन करते हैं। दर्शन के लिए प्रवेश करने से पहले भक्त पहाड़ पर कुछ चढ़ाई के बाद स्थित श्वेत गंगा कुंड में स्नान करते हैं।

    फिर पत्थरों के सहारे करीब एक किमी. चढ़ने के बाद मंदीपखोल गुफा का प्रवेश द्वार दिखाई देता है। करीब ढाई फीट के छोटे दरवाजे से झुककर 10 से 12 कदम चलने के बाद गुफा में आसानी से खड़ा हुआ जा सकता है। अन्दर इतना अँधेरा है कि हाथ को नहीं लगता. पर्यटक टॉर्च की रोशनी की मदद से प्रवेश करते हैं।

    अंदर रोशनी में जुगनू की तरह चमकते पत्थर हैं। यहां कई शिवलिंग भी स्थापित हैं। यहां कई अजीब रास्ते हैं।

    कहा जाता है कि कई कोशिशों के बाद भी इसका अंत पता नहीं चल सका। दरवाजा खोलने से पहले वहां रखे विशाल पत्थर को हटाकर फायरिंग की जाती है, ताकि अंदर छिपे जंगली जानवर भाग जाएं।

    बारिश में पहाड़ का पानी गुफा के अंदर घुस जाता है। जब नदी-नाले उफान पर होते हैं. सर्दियों में जल स्तर कम होता है, लेकिन नदी सूखती नहीं है।

    लेकिन आस्था की दृष्टि से गुफा साल में केवल एक बार ही खुलता है क्योंकि यहां पूरे साल की पूजा एक ही समय पर होती है।

    इस गुफा तक पहुंचने के लिए रस्सी की सीढ़ी का इस्तेमाल करना पड़ता है।