रायपुर शहर के फेमस आस-पास घूमने की जगह | पुरखौती मुक्तांगन

रायपुर शहर के फेमस आस-पास घूमने की जगह | पुरखौती मुक्तांगन

पर्यटन की दृष्टि से रायपुर में ही नहीं बल्कि इसके आसपास भी कई नई और पुरानी जगहें हैं। नंदन वन और जंगल सफारी उन लोगों के लिए एक आदर्श स्थान है जो वन्य जीवन को करीब से देखना चाहते हैं। इसके अलावा यहां मंदिरों और ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा करने वालों के लिए कई विकल्प हैं।


    01. पुरखौती मुक्तांगन

    नया रायपुर स्थित पुरखौती मुक्तांगन परिसर में छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत संरक्षित है। पुरखौती मुक्तांगन परिसर के गेट पर पहुंचने से पहले ही दीवार पर चित्रित छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक स्थलों से जुड़ी कहानियां दिखाई देती हैं, जो हमें इस क्षेत्र में बनी मान्यताओं और परंपराओं से अवगत कराती हैं।

    मुक्तांगन के मध्य भाग में आदिवासी कलाकृतियाँ दोनों ओर ढोलक पर थाप देकर पर्यटकों का स्वागत करती प्रतीत होती हैं।

    लोहे और पत्थर से बनी 50 फीट ऊंची प्रतिमा के चारों ओर टेराकोटा से बनी विभिन्न आकृतियां हैं।

    किसी आकृति में मातृत्व दिखता है तो कहीं वनवासियों की जीवनशैली दिखती है।

    मुख्य सड़क के दाहिनी ओर का क्षेत्र इस क्षेत्र की जीवनशैली, वास्तुकला आदि का परिचय देता है।

    मुख्य सड़क के अंत में एक अभिनव जल मंच विकसित किया जा रहा है।

    इसके साथ ही यहां एक भव्य प्रतिमा भी है जो 'ताला' (बिलासपुर) के 'रुद्र शिव' का दर्शन कराती है।

    इसके पास ही क्षेत्र के प्रसिद्ध मंदिरों की प्रतिकृति भी तैयार की जा रही है। यहीं पर माड़िया खंबा एवं लोक स्थापत्य शैली से सुसज्जित आवासीय परिसर स्थापित है।

    गाँव के खुले मैदानों जैसी पृष्ठभूमि में नाचती हुई आकृतियाँ राज्य के पारंपरिक नृत्यों का परिचय देती हैं।

    मध्य भाग में आदिवासियों के पारंपरिक आभूषणों का वैभव देखने को मिलता है। मुक्तांगन के मध्य में सुशोभित पारंपरिक छत्तीसगढ़ी महिला का भव्य शिल्प है।

    मुक्तांगन में प्रवेश करते ही बायीं ओर के क्षेत्र में इस क्षेत्र के पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों पर कला का कौशल दिखाने वाली जनजातीय प्रतिकृतियों का समूह सहज ही ध्यान आकर्षित करता है।

    'बाजा बजगरी' शीर्षक वाले इस खंड में छत्तीसगढ़ के लोक संगीत की मनभावन झांकी है।

    इस ब्लॉक के निकट 'मन्याताला' नामक विकसित क्षेत्र में छत्तीसगढ़ के विभिन्न पारंपरिक मुखौटों को दर्शाया गया है।



    02. जंगल सफ़ारी, नया रायपुर

    नया रायपुर के दक्षिणी छोर पर खंडवा गांव के पास स्थित यह जंगल सफारी रायपुर के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।

    इसे एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी मानव निर्मित जंगल सफारी माना जाता है। इसका उद्घाटन 1 नवंबर 2016 को हुआ था और 6 नवंबर 2016 से यहां पर्यटकों का प्रवेश शुरू हो गया था।

    इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्राकृतिक मनोरंजन के साथ-साथ राज्य में वन्यजीव अनुसंधान केंद्र के रूप में विकसित किया गया है।

    यह नया रायपुर में लगभग 1,216 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें 800 एकड़ की जंगल सफारी और 416 एकड़ का चिड़ियाघर शामिल है।

    इसका निर्माण वाशिंगटन और न्यूयॉर्क स्थित सेंट्रल पार्क की तर्ज पर किया गया है। हालांकि पर्यटकों की आवाजाही शुरू हो गई है, लेकिन इसके विभिन्न क्षेत्रों को अपग्रेड करने का काम अभी भी जारी है।

    इस जंगल सफारी के कुल क्षेत्रफल में लगभग 52.52 हेक्टेयर जल क्षेत्र भी शामिल है। यहां प्रतिदिन लगभग 10,000 पर्यटक आ सकेंगे और विश्व स्तरीय प्राकृतिक दृश्यों का अवलोकन कर सकेंगे।

    इसकी दीवार एक हरे रंग की दीवार की तरह दिखती है, जिसकी भविष्य में कुल लंबाई 7 किलोमीटर होगी। इसमें से 4.85 किमी जमीन पर बनेगी, जबकि पानी के बीच से गुजरने वाली दीवार की लंबाई 2.15 किमी होगी।

    आगामी योजना के तहत छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की विश्व प्रसिद्ध कुटुमसर प्राकृतिक गुफाओं की तर्ज पर यहां भी 294 मीटर लंबी गुफा बनाई जाएगी। इस गुफा में चलकर लोग नया रायपुर की इको-फ्रेंडली बस पार्किंग तक पहुंच सकेंगे।

    वहां से जंगल सफारी भ्रमण के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई इको-फ्रेंडली बस उपलब्ध होगी। इस जंगल सफारी के निर्माण में लगभग 250 करोड़ रुपये की लागत आई है।



    03. शादाणी दरबारी

    शदाणी दरबार रायपुर से 8 किमी दूर है। यह रायपुर-विशाखापत्तनम राष्ट्रीय राजमार्ग पर माना के पास स्थित है।

    इसका निर्माण वर्ष 1990 में अष्टम ज्योति संत गोविंद राम जी ने अपनी देखरेख में करवाया था। यह लगभग 12 एकड़ में विस्तृत चहारदीवारी से घिरा हुआ है, जिसके मध्य में शदाणी दरबार मंदिर अत्यंत भव्य एवं कलात्मक प्रतीत होता है।

    शदाणी दरबार का नाम सिंधी समाज के पूज्य संत श्री शदारामजी साहब के नाम पर रखा गया है।

    शदाणी दरबार तीर्थ के गर्भगृह में धुणी साहेब विराजमान हैं। गर्भगृह के अंदर और बाहर पूर्व संतों की संगमरमर की मूर्तियाँ हैं।

    इसके अलावा यहां वैदिक काल के ऋषि-मुनियों के मंदिर, भगवान श्रीकृष्ण और देवी दुर्गा की विशाल प्रतिमाएं भी हैं। यहां स्थापित वेद मंदिर में मथेला (सिंध) का प्राचीन कलश प्रमुख आकर्षणों में से एक है। यह कलश 240 वर्ष पूर्व का बताया जाता है।

    इसके अलावा यहां भारत, नेपाल और कृष्ण काल के वेदभूमि सिंध के मानचित्र भी देखे जा सकते हैं। संत तुलसीदास की स्मृति में यहां एक तुलसी सरोवर भी है।

    गर्भगृह के बाहर दाहिनी ओर पाँचवीं संत 'माता हासी देवी' की ऐतिहासिक खाट रखी हुई है। यहां देवी-देवताओं समेत 24 अवतारों की मूर्तियां स्थापित हैं।

    मुख्य मंदिर के ऊपर एक विशाल सत्संग हॉल बना हुआ है। दरबार तीर्थ के दाहिनी ओर एक विशाल भंडारा हॉल है। इसे तीसरे संत तख्त लाल हजोरी भंडारा हॉल के नाम से जाना जाता है। इस हॉल के सामने आठवें संत गोविंद राम की समाधि है।

    शदाणी दरबार का महत्व सिर्फ रायपुर में ही नहीं बल्कि देश के बाहर पाकिस्तान के लिए भी आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में पाकिस्तान से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।



    04. शिव मंदिर, गिरोद

    यह मंदिर रायपुर से लगभग 25 किमी दूर नवागांव तालाब के किनारे स्थित है। पूर्वाभिमुख इस मंदिर के तीनों भाग, गर्भगृह, अंतराल और मंडप सुरक्षित हैं। लेकिन गर्भगृह खाली है. संभवतः यह एक शिव मंदिर था।

    गर्भगृह की पत्थर से निर्मित चौखट और मंडप के स्तंभ मंदिर की दीवारों और शिखर से भी अधिक प्राचीन प्रतीत होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इस मंदिर के निर्माण में पहले से निर्मित किसी अन्य ध्वस्त मंदिर की चौखट और स्तंभों का उपयोग किया गया है।

    हालाँकि, यह अवशेष छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले समकालीन ईंट-निर्मित मंदिर-वास्तु का एक सुंदर उदाहरण है। मंदिर परिसर में ईंटों से निर्मित प्राचीन हनुमान मंदिर भी है।

    वर्तमान में इस मंदिर के निकट विश्वनाथ महादेव राज राजेश्वरी अंबिका मंदिर का निर्माण स्थानीय निवासियों द्वारा कराया गया है।



    05. चण्डी माई का चबूतरा और पचरी तालाब

    गिरोद गांव में एक और धार्मिक स्थल है, जिसे चंडी माई के चबूतरे के नाम से पूजा जाता है।

    यहां 7वीं-8वीं शताब्दी की महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है। इस चबूतरे पर इस काल में बनी अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी देखी जा सकती हैं।

    गिरोद गांव में ऐतिहासिक महत्व का एक तालाब है, जिसे पचरी तालाब के नाम से जाना जाता है। इस तालाब पर एक शिलालेख है, जिसके अनुसार 1900 के अकाल के दौरान मार्च माह में रायपुर जिले को 56 कार्य प्रभार क्षेत्रों में बांटकर राहत कार्य किये गये थे, जिसमें 2 लाख लोगों को रोजगार मिला था।



    06. विश्वनाथ मंदिर, नवागांव

    यह मंदिर रायपुर से लगभग 25 किमी दूर नवागांव तालाब के किनारे स्थित है।

    पूर्वाभिमुख इस मंदिर के तीनों भाग, गर्भगृह, अंतराल और मंडप सुरक्षित हैं। लेकिन गर्भगृह खाली है. संभवतः यह एक शिव मंदिर था। गर्भगृह की पत्थर से निर्मित चौखट और मंडप के स्तंभ मंदिर की दीवारों और शिखर से भी अधिक प्राचीन प्रतीत होते हैं।

    ऐसा प्रतीत होता है कि इस मंदिर के निर्माण में पहले से निर्मित किसी अन्य ध्वस्त मंदिर की चौखट और स्तंभों का उपयोग किया गया है। हालाँकि, यह अवशेष छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले समकालीन ईंट-निर्मित मंदिर-वास्तु का एक सुंदर उदाहरण है। मंदिर परिसर में ईंटों से निर्मित प्राचीन हनुमान मंदिर भी है।

    वर्तमान में इस मंदिर के निकट विश्वनाथ महादेव राज राजेश्वरी अंबिका मंदिर का निर्माण स्थानीय निवासियों द्वारा कराया गया है।



    07. बंजारी धाम खपरी (गढ़ी)

    खपरी राजधानी रायपुर से 30 किमी की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि 40 साल पहले खपरी के घने जंगल में एक इमली के पेड़ के नीचे से बंजारी माता की मूर्ति निकली थी।

    खपरी के निकट गाँव में भयंकर महामारी फैल गयी और अनेक लोग मर गये। डर से भयभीत होकर बचे हुए लोग अपना घर छोड़कर इस जंगल में बस गए और देवी की कृपा से सुरक्षित बच गए।

    उसी समय, एक रात खपरी के तीरथराम सगरवंशी और गढ़ी के सोनसाय साहू को जंगल में एक देवी की मूर्ति होने का सपना आया।

    सुबह उन्होंने ग्रामीणों से सलाह कर इमली के पेड़ के पास मिट्टी का टीला हटाया तो देवी बंजारी, शिवलिंग और चरण पादुका के दर्शन किये। तभी से लोगों की मां बंजारी पर अटूट आस्था होने लगी।

    लगभग 10 वर्ष पूर्व स्थानीय नागरिकों ने बंजारी देवी का पक्का मंदिर बनवाकर मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा करायी। पूर्णिमा के दिन यहां बंजारी माता का विशाल मेला लगता है। इस मेले में भाग लेने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं।