सुकमा जिला का इतिहास और आस पास की दर्शनीय पर्यटन स्थल

सुकमा जिला का इतिहास और आस पास की दर्शनीय पर्यटन स्थल

शबरी नदी के तट पर स्थित सुकमा जिला न केवल बस्तर संभाग, बल्कि छत्तीसगढ़ के भी दक्षिणी छोर का सबसे अंतिम जिला है। इस जिले की स्थापना 1 जनवरी 2012 को दंतेवाड़ा से अलगकर की गई थी। इसकी सीमाएं उड़ीसा और आंध्र प्रदेश से लगी हुई है। इस नवनिर्मित जिले में तीन तहसीलें छिंदगढ़, कोण्टा तथा सुकमा शामिल है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण इस जिले में पर्यटकों की आवाजाही बहुत कम है। रियासत काल में यह एक महत्वपूर्ण जमींदारी हुआ करती थी, जिसके अंतर्गत लगभग 650 वर्गमील का क्षेत्र आता था और इसमें 126 गांव शामिल थे। उल्लेखनीय है, कि बस्तर क्षेत्र में मात्र सुकमा के ही जमींदार क्षत्रिय थे, जबकि शेष जमींदारियों के गोण्ड शासक थे।

इतिहासकारों के अनुसार सुकमा पहले भीजी राज्य के अंतर्गत आती थी। वहाँ के कोरकोण्डा वंश के आदिवासी शासक से युद्ध कर रामचंद्रराज ने सुकमा क्षेत्र हासिल किया। वे कल्याणी के चालुक्य थे और वहां उनका आगमन अन्नमदेव के बस्तर विजय अभियान से बहुत पहले हो चुका था।

इतिहासकारों के अनुसार सुकमा लगभग 1300 ईस्वी में अस्तित्व में आया। यहाँ से 3 कि.मी. दूर महादेव डोंगरी एक प्राचीन शिव मंदिर है, जहाँ शिवरात्रि के अवसर पर अनेक श्रद्धालु पहुँचते हैं। इस शिव मंदिर के बारे में जनश्रुति है, कि सुकमा क्षेत्र के जमींदार राजस्थान से आए थे और बस्तर के महाराजा के अधीन थे। उनके पूर्वज तत्कालीन मुगल तथा अन्य शासकों के उत्पीड़न से बचने के लिए विभिन्न वन मार्गों से सुकमा पहुँचे तथा स्वयं के लिए आश्रय तलाशने लगे। इस समूह में एक परिवार था, जिसमें पति-पत्नी के साथ उनका एक पुत्र भी था। तीनों शबरी नदी को पार कर नदी के दूसरे तट पर पहुँचना चाहते थे। परंतु जैसे ही मंझधार में पहुँचे उनकी नौका भंवर में फंस गई।

नाविक ने कहा, 'आपमें से किसी एक को इस नाव से उतरना होगा तभी शेष लोगों की जान बचेगी।' पिता नदी में छलांग लगाने को तत्पर हो गया। उसके लड़के ने कहा-आप दोनों भविष्य में भी किसी और संतान को जन्म दे सकते हैं। इसलिए नदी में मैं छलांग लगाऊँगा। यह कहकर वह नदी में कूद गया। जिस स्थान पर पुत्रने नदी में छलांग लगाई वह स्थान आज मनिपुट्टा के नाम से जाना जाता है। यह तेलावर्ती ग्राम के निकट नदी के मध्य बना एक टापू है, जिस पर आज भी लकड़ी का खड़ाऊं तथा त्रिशूल देखा जा सकता है। श्रद्धालु शिवरात्रि तथा मकर संक्रांति के अवसर पर यहाँ आकर पूजा-अर्चना करते हैं। कहते हैं, कि नदी में बाढ़ की स्थिति में भी यह टापू नहीं डूबता । मान्यता है, कि जिस दिन यह टापू डूब जाएगा उस दिन कोई बहुत बड़ा संकट आ जाएगा। वह दम्पत्ति महादेव डोंगरी में बसने का प्रयत्न करने लगे परंतु जंगली जानवरों के भय से शबरी नदी के तट पर आकर बस गए और शिव मंदिर की स्थापना की। बाद में वे सुकमा के रजवाड़ा क्षेत्र में आकर बस गए। उन्होंने ही इस जगह का नाम सुकमा रखा।


    01 रामरामिन माता मंदिर

    नगर के बाहरी छोर पर स्थित रामरामिन माता मंदिर को चिटमटिन अम्मा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर स्थानीय निवासियों के लिए आस्था का केन्द्र है। दक्षिण भारतीय शैली में निर्मित इस मंदिर के सामने की ओर अनेक चबूतरे निर्मित किए गए हैं, जो फरवरी माह में यहाँ लगने वाले मेले में उपयोग किए जाते हैं।

    मंदिर के निकट ही एक पहाड़ी है, जहाँ से आसपास का सुंदर नज़ारा देखा जा सकता है। इस पहाड़ी के ऊपर किसी अन्य ध्वस्त मंदिर का अवशेष भी है, जिसके बारे में किंवदंती यह है, कि कभी चिटमटिन माता का मंदिर ऊपर पहाड़ी पर ही हुआ करता था। एक दिन मंदिर के पुजारी ने पूजा में देर कर दी, क्रोधित देवी ने पूजा की थाल और लोटा फेंक दिया। जहाँ लोटा गिरा आज वहाँ वर्तमान मंदिर स्थित है। पहाड़ी पर एक प्रस्तर पर उकेरी हुई थाली की आकृति है।

    जिसे देवी द्वारा फेंकी गई थाली का प्रतीक माना जाता है। पहाड़ी पर एक बारहमासा जलकुण्ड भी है। इस मंदिर में प्रत्येक वर्ष मेला लगता है।



    02 दुदमा जलप्रपात एवं शिव मंदिर, नेतनार

    मध्यम ऊँचाई वाला यह खूबसूरत जलप्रपात जिले के छिन्दगढ़ तहसील में दुरमा नदी द्वारा निर्मित है। खूबसूरत पहाड़ियों के मध्य फैली हरियाली और इस जलप्रपात का संयोग एक नयनाभिराम दृश्य उपस्थित करता है। सुव्यवस्थित पहुँच मार्ग के अभाव तथा असुरक्षा बोध के कारण यहाँ पर्यटक नहीं आते।

    यहाँ से कुछ ही दूरी पर नेतनार ग्राम में शबरी नदी के तट पर एक प्राचीन शिव मंदिर स्थापित है। यह अल्पज्ञात मंदिरों में से एक है। यहाँ प्रतिवर्ष शिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है।



    03 तुंगल जलाशय

    सुकमा से लगा हुआ छोटा सा ग्राम है मुरतोंडा। इस ग्राम में पानी को रोकने के लिये छोटा सा बांध बनाया गया है, जिसके कारण एक बड़े भू-भाग पर जलभराव हो गया है। तुंगल नाम से प्रसिद्ध यह बाँध चारों तरफ घने जंगलों से घिरा हुआ है। पानी में छोटे-छोटे टापू बने हुए हैं, जिस पर छायादार घने वृक्षों की भरमार है। जलभराव के कारण ताड़ के वृक्ष भी पानी में कतारबद्ध डूबे हुए है। नगर में मनोरंजन के साधनों का अभाव होने के कारण जिला प्रशासन ने वन विभाग से मिलकर सिंचाई के उपयोग में लाये जाने वाले तुंगल बांध को ईको पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित किया है। बाँध में नौकायन, की भी व्यवस्था है। पास ही छोटा सा पार्क बनाया गया है, जिसमें एमु जैसे विशाल पक्षी रखे गये है। यहाँ गर्मी के दिनों में पर्यटकों का तांता लगा रहता है। पार्क के कारण तुंगल बाँध बच्चों की सबसे पसंदीदा जगह है।



    04 आधुनिक मंदिर, कोडरीपाल

    जिले के छिंदगढ़ तहसील के कोडरीपाल नामक ग्राम में स्थित यह मंदिर आधुनिक संरचना है। इस मंदिर का निर्माण प्राचीन शैली में किया गया है। अपने वास्तुशिल्प के कारण इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली है।



    05 एर्राबोर

    जिले के कोंटा तहसील में स्थित यह गाँव पहाड़ियों के बीच बसा है। यहाँ का प्राकृतिक वातावरण मनमोहक है। इसके अलावा यहाँ चारों तरफ फैले मृतक स्तम्भ तथा पुरातात्विक महत्व की मूर्तियाँ शोधकर्ताओं के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यहाँ किसी पेड़ के नीचे या पत्थरों के बीच कहीं भी पड़ी प्राचीन मूर्तियाँ दिख जाती हैं। यद्यपि यहाँ सैलानियों की आवाजाही बहुत कम है।



    06 ब्रम्हा मंदिर, जगरगुंडा

    यह प्राचीन मंदिर अक्तूबर 2011 में प्रकाश में आया। ग्रामीणों के अनुसार इसका निर्माण 11 वी शताब्दी में वारंगल से आये राजा अन्नमदेव ने करवाया है था। हालाँकि पुरातत्व विभाग ने इस स्थल का संज्ञान अब तक नहीं लिया है। इतिहासकारों के अनुसार 11वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में काकतीय वंश के राजाओं का शासन था। वैसे यहाँ के पुजारी के अनुसार उसका परिवार सात पीढ़ियों से इस मंदिर की देखभाल कर रहा है। यह दायित्व उसके पुरखों को राजा अन्नमदेव ने दिया था। इस मन्दिर के इतिहास को जानने के लिए व्यापक शोध की आवश्यकता है। इस मन्दिर में ब्रम्हा, विष्णु, महेश, शीतला देवी, अष्टभुजी देवी दुर्गा, परशुराम, शिवलिंग व गणेश जी की मूर्तियाँ स्थापित हैं। त्रिदेव की मूर्तियाँ दुर्लभ मानी जाती हैं। इसलिए भी इस देवस्थल को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

    जगरगुंडा से 2 किलो मीटर दूर देवी दुर्गा की प्राचीन प्रतिमा आधी जमीन में धंसी हुई है। यहाँ पीपल के पेड़ के नीचे शिवलिंग सहित कई प्राचीन प्रतिमाएँ हैं। स्थानीय निवासी इनकी गंगाम्मा देवी के नाम से पूजा करते है।



    07 इंजरम

    पोलवारम बांध के डूबान क्षेत्र में आ रहे कोंटा ब्लॉक में स्थित इंजरम सुकमा के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। मान्यता है, कि वनवास के दौरान सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ श्रीराम ने शिवलिंग की स्थापना कर महादेव की आराधना की थी। उनके जाने के बाद इस गांव का नाम इंजरम अर्थात अभी राम आकर गए हैं, रखा गया था। छत्तीसगढ़ में राम वनगमन के अनुसार कुटुमसर से सुकमा होकर भगवान रामरामिन और उसके बाद वे कोंटा से लगे इंजरम पहुंचे थे। यहां की पहाड़ी में राम के पद चिन्ह मिलने की किवदंती भी है।