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मध्यप्रदेश की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक विशेषताओं का सबसे महत्त्वपूर्ण छोर छत्तीसगढ़ में है । राजनैतिक अथवा भौगोलिक सीमांकन से इतिहास में परिवर्तन नहीं होता, न मिट्टी के रंग में बदलाव होता है, न लोग सदियों से चले आ रहे रिवाज़ों को बदल देते हैं । और अब जबकि अतुलनीय छत्तीसगढ़ आपके हाथों में है, हमें लग रहा है यह तो महज एक शुरूआत भर है।

छत्तीसगढ़ को तब तक नहीं जाना जा सकता, जब तक कि सीमावर्ती राज्यों झारखण्ड, महाराष्ट्र, ओड़िसा आदि को भी न जान लें ।अर्थात यह एक ऐसा सफ़र है जिसमें शोधकर्ताओं के हिस्से में कुछ पड़ाव मात्र आते हैं। यह सफ़र कहां खत्म होगा, किन- किन मोड़ों से गुजरेगा, कह पाना मुमकिन नहीं है। दरअसल जानने की यह प्रक्रिया मन के भीतर पहले असंतोष पैदा करती है, फिर वही आगे बढ़ने के लिए उकसाती भी है।

इस प्रक्रिया में सामग्री संकलन और वित्तीय व्यवस्था जैसी छोटी-छोटी कई बातें एक दूसरे से गुंथी हुई होती हैं । इन्हें हम व्यावहारिक चुनौतियां कह सकते हैं। छत्तीसगढ़ में अपनी धरोहर से प्यार करने वाले कई लोग हैं। ये विभिन्न पुस्तकों, ब्लॉगों और यहां तक कि सोशल मीडिया के माध्यम से अलग- अलग स्थानों की जानकारी दर्ज करते हैं ताकि दुनिया छत्तीसगढ़ को जान सके। हमारे लिए ऐसे लोग जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत बन गए। हमें यह कहने में रत्ती भर संकोच नहीं कि इनके सहयोग के बिना इस संदर्भ ग्रंथ को पूरा कर पाना संभव नहीं था ।

इन्हीं अलग-अलग बिखरे हुए स्रोतों के माध्यम से हमने छत्तीसगढ़ को जितना जाना वह इस संदर्भ ग्रंथ में समेटने का यत्न किया है। वैसे कई स्थान अभी भी ऐसे हैं जिन पर अध्ययन होना अभी बाकी है। इनमें से कई नक्सलियों की जद में हैं तो कई जगह पहुंच पाना अभी तक मुमकिन नहीं हो पाया है। पर्यटन की दृष्टि से इस राज्य को देखें तो यह जादुई शीशे जैसा प्रतीत होता है।

उदाहरण के लिए यदि किसी को मात्र प्राकृतिक गुफ़ाओं में रूचि हो तो रामगढ़ और उसके आसपास की पहाड़ियां उसे कई महीनों तक अपने पास रोक सकती हैं। शायद इसलिए वारंगल से बस्तर पहुंचे अन्नमदेव यहाँ की मिट्टी में कुछ इस प्रकार रच बस गए कि किसी को भी याद नहीं रहा कि वे स्थानीय शासक नहीं है। इतिहासकारों के अनुसार उन्होंने यहाँ की संस्कृति में खुद को प्रतिस्थापित कर लिया।

बस्तर वह स्थान है जो लोगों को अपने देवताओं से प्रश्न पूछने का हक़ देती है। देवताओं के खिलाफ नालिश होती है और उनके खिलाफ सुनवाई होती है। 'जिसे पूजो उसी से पूछो' काश यह अधिकार हम सबके पास भी होता। इसलिए यह हैरानी की बात नहीं है अगर आज भी किसी को छत्तीसगढ़ की धरती पर कुछ वक्त बिताने का मौका मिले और वह हमेशा के लिए वहीं बस जाए ।

इसी प्रकार किसी मनमौजी घुमक्कड़ को प्रागैतिहासिक शैलचित्रों में दिलचस्पी हो तो राजनांदगांव के चितवा डोंगरी, रायगढ़ के पास बसनाझर, ओगना, करमाझर, रामगढ़ की पहाड़ियां, कबरा पहाड़ आदि उसके लिए किसी जन्नत से कम नहीं। इन चित्रों में हमारे पुरखे आज भी जिंदा हैं। हर चित्र कुछ कहते है, उस समय के बारे में जब वे इस धरती को हमारे लिए रहने लायक बना रहे थे ।

यही बात अन्य स्थलों के बारे में भी कही जा सकती है। सैलानी किसी भी रूचि का हो, छत्तीसगढ़ में अपने मनोनुकूल उसे कुछ न कुछ अवश्य मिल जाएगा । यह संदर्भ ग्रंथ सैलानियों के लिए बेहतरीन टूरिज़्म गाइड' कतई नहीं है बल्कि इसे प्रकाशित करने का मकसद अध्ययनकर्ताओं को कुछ महत्पूर्ण बिंदुओं का संकेत भर देना है। ऐसे संकेत जो परिकल्पनात्मक प्रारूप तैयार करने में मददगार सिद्ध होते हैं

अंत में, दुरूह खोहों, घने जंगलों, खण्डहरों और कहीं- कहीं ऊंची अट्टालिकाओं के बीच छिपी विपुल सम्पदा को प्रकाश में लाने से पहले हमें इस बात पर भी विचार करना होगा, कि क्या हम इनकी हिफ़ाज़त के लिए तैयार हैं। अगर हममें इन्हें संभालने की तमीज़ नहीं, तो क्या इनका अज्ञात रहना ही बेहतर नहीं हैं ।